डाॅ. अशोक द्विवेदी@bhojpuripanchayat.in तेजी से बदलते समय में, आधुनिक जीवन शैली शहरों, महानगरों में रह रहे लोगों को ‘लोक’ से दूर करती जा रही है। आज के आदमी को लोक की आत्मीय सुधि तो आती है पर उसकी आत्मीय-चेतनता, उससे इसलिये जुड़ नहीं पाती क्योंकि लोक परंपरा से मिली सुनने-सुनाने वाली भाषा ही छूट गई है। नई भाषा, जिसमें उसका क्रिया-व्यापार चल रहा है, उसमें लोक के जीवन्त तत्व (संवेदना, सामूहिकता और आपुसी हृदय-संवादिता) लुप्तप्राय…
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